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पपीते की फसल

लाखों का हुआ नुकसान, इस स्टेट में हो गया पपीते का फसल बर्बाद

लाखों का हुआ नुकसान, इस स्टेट में हो गया पपीते का फसल बर्बाद

महाराष्ट्र में पपीते की फसल को फंगल वायरस ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। किसानों का लाखों रुपए का पपीता का फसल बर्बाद हो गया है, जिससे किसान काफी चिंतित है। किसानों का फसल बर्बाद होना अब तो आम बात हो गया है। कभी बारिश, बाढ़ तो कभी अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को हमेशा क्षति का सामना करना पड़ता है, इस साल भी बारिश, बाढ़ और सूखे के कारण किसानों की करोड़ों रुपए की फसल बर्बाद हो गई। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=7Sqo7C2ljF4&t=4s[/embed] अभी किसान अपने नुकसान की मार झेल ही रहे थे, कि महाराष्ट्र में वायरस ने पपीते की फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया। इन दिनों महाराष्ट्र में पपीते की फसल तेजी से बर्बाद हो रही है, जिसके कारण किसान बहुत ही मायूस हो गए हैं और अब वह दूसरे फसल की ओर रुख कर रहे हैं। भारी नुकसान का सामना करने के बाद किसानों के पास अब कोई रास्ता नहीं बच गया हुआ है।


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महाराष्ट्र के बीड जिले में किसानों ने कई एकड़ में पपीते की खेती की थी, जिसमें फल लगाना शुरू हो गया था। लेकिन फल के पकने के समय फंगल वायरस के कारण सभी फल खराब होते नजर आ रहे हैं। जिस तरह सूखे और बाढ़ के मार झेलने के बाद किसान काफी चिंतित हो गए थे, और वह पूरी तरह से पपीते की फसल पर निर्भर हो गए थे, कि इससे अर्जित होने वाली कमाई से अपने नुकसान की भरपायी कर पाएंगे। लेकिन इस बार भी उन्हें निराशा हाथ लगी है, जो कि काफी चिंता का विषय है। फंगल वायरस के प्रकोप के कारण पपीते में धब्बे दिखने लगे हैं, जिसके बाद पपीता काला होकर खराब हो जा रहा है। पपीते के इस तरह से खराब हो जाने के कारण किसान खुद ही अपने बगीचे को खत्म करने में लगे हुए हैं, गौरतलब है कि किसानों ने बगीचे को सवारने में लाखों रुपए तक खर्च किए थे। इस बार किसानों के बगीचे में पपीते की अच्छी पैदावार हो रही थी। पिछले महीने में हुई बारिश के कारण पपीते को काफी नुकसान हुआ था। बारिश के बाद से पपीते के पेड़ों में सड़न पैदा हो गई थी, सड़न होने के पीछे फंगल वायरस को कारण बताया जा रहा है। पपीते बुरी तरह से खराब होने के बाद किसान सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।


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हालांकि सरकार के तरफ से किसानों को पपीते के फसल के बर्बाद हो जाने के बाद अभी तक किसी तरह का कंपनसेशन प्राप्त नहीं हुआ है। जिससे किसान बहुत ही चिंतित है। मीडिया रिपोर्ट की बात करें तो किसानों का इतना बुरा हाल हो गया है, कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि अब वह कौन सी फसल की खेती करें और किस फसल से बेहतर उपज के साथ बेहतर मुनाफा अर्जित कर के अपने हुए नुकसान की भरपायी कर पाऐं। सूखे और बारिश का दंश झेल रहे किसानों को जिस तरह से हर बार निराशा हाथ लग रही है, उससे कहीं ना कहीं आमजन पर आने वाले समय में महंगाई का गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा। उधर महाराष्ट्र में अनार और मोसंबी के खेती करने वाले किसानों को भी इस बार भारी बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है। पर्याप्त मात्रा में उत्पादन की कमी हुई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।


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आजकल ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती को छोड़ बागवानी की खेती करना शुरू कर रहे हैं। कई जिलों में बागवानी का क्षेत्रफल भी बढ़ रहा है, लेकिन बागवानी की खेती में भी फंगल वायरस ने इस कदर हमला किया है, कि बागवानी उजड़ने लगी है। इससे किसानों का भारी नुकसान हो रहा है। इस बार किसानों को पपीते से अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन दोबारा से बारिश के हो जाने के कारण उनके मंसूबे पर पानी फिर गया है। आर्थिक संकट का मार झेल रहे किसानों के लिए अब दूसरा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार के तरफ से भी किसानों के लिए किसी भी तरह के आर्थिक सहयोग की बात अभी तक नहीं की गई है, जिससे किसान काफी चिंतित है।
येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। यहां लगभग 3000 हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बाग इस वायरस की चपेट में हैं। इसकी वजह से किसानों का परिश्रम और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो गई है। किसानों ने सरकार से मांगा मुआवजा। सोयाबीन की खेती को बर्बाद करने के पश्चात फिलहाल येलो मोजेक वायरस का प्रकोप पपीते की खेती पर देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से पपीता की खेती करने वाले किसान काफी संकट में हैं। इस वायरस ने एकमात्र नंदुरबार जनपद में 3 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बागों को प्रभावित किया है, इससे किसानों की मेहनत और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो चुकी है। महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में देखा जा रहा है, कि मोजेक वायरस ने सोयाबीन के बाद पपीते की फसल को बर्बाद किया है, जिनमें नंदुरबार जिला भी शामिल है। जिले में पपीते के काफी बगीचे मोजेक वायरस की वजह से नष्ट होने के कगार पर हैं।

सरकार ने मोजेक वायरस से क्षतिग्रस्त सोयाबीन किसानों की मदद की थी

बतादें, कि जिस प्रकार राज्य सरकार ने मोजेक वायरस की वजह से सोयाबीन किसानों को हुए नुकसान के लिए सहायता देने का वादा किया था। वर्तमान में उसी प्रकार पपीता किसानों को भी सरकार से सहयोग की आशा है। महाराष्ट्र एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य है। परंतु, उसकी खेती करने वालों की समस्याएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इस वर्ष किसानों को अंगूर का कोई खास भाव नहीं मिला है। बांग्लादेश की नीतियों की वजह से एक्सपोर्ट प्रभावित होने से संतरे की कीमत गिर गई है। अब पपीते पर प्रकृति की मार पड़ रही है।

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पपीते की खेती में कौन-सी समस्या सामने आई है

पपीते पर लगने वाले विषाणुजनित रोगों की वजह से उसके पेड़ों की पत्तियां शीघ्र गिर जाती हैं। शीर्ष पर पत्तियां सिकुड़ जाती हैं, इस वजह से फल धूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। व्यापारी ऐसे फलों को नहीं खरीदने से इंकार कर देते हैं, जिले में 3000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में पपीता इस मोज़ेक वायरस से अत्यधिक प्रभावित पाया गया है। हालांकि, किसानों द्वारा इस पर नियंत्रण पाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं। परंतु, पपीते पर संकट दूर होता नहीं दिख रहा है। इसलिए किसानों की मांग है, कि जिले को सूखा घोषित कर सभी किसानों को तत्काल मदद देने की घोषणा की जाए।

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पपीता पर रिसर्च सेंटर स्थापना की आवश्यकता

नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। प्रत्येक वर्ष पपीते की फसल विभिन्न बीमारियों से प्रभावित होती है। परंतु, पपीते पर शोध करने के लिए राज्य में कोई पपीता अनुसंधान केंद्र नहीं है। इस वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह जरूरी है, कि वे नंदुरबार में पपीता अनुसंधान केंद्र शुरू करें और पपीते को प्रभावित करने वाली विभिन्न बीमारियों पर शोध करके उस पर नियंत्रण करें, जिससे किसानों की मेहनत बेकार न जाए।

येलो मोजेक रोग के क्या-क्या लक्षण हैं

येलो मोजेक रोग मुख्य तौर पर सोयाबीन में लगता है। इसकी वजह से पत्तियों की मुख्य शिराओं के पास पीले धब्बे पड़ जाते हैं। ये पीले धब्बे बिखरे हुए अवस्था में दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे पत्तियां बढ़ती हैं, उन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। कभी-कभी भारी संक्रमण की वजह पत्तियां सिकुड़ और मुरझा जाती हैं। इसकी वजह से उत्पादन प्रभावित हो जाता है।

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येलो मोजेक रोग की रोकथाम का उपाय

कृषि विभाग ने येलो मोजेक रोग को पूरी तरह खत्म करने के लिए रोगग्रस्त पेड़ों को उखाड़कर जमीन में गाड़ने या नीला व पीला जाल लगाने का उपाय बताया है। इस रोग की वजह से उत्पादकता 30 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसके चलते कृषि विभाग ने किसानों से समय रहते सावधानी बरतने की अपील की है।